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स्वतंत्रता आंदोलन के कुछ प्रमुख नारे

 


स्वतंत्रता आंदोलन के कुछ प्रमुख नारे 

  • "जय हिन्द "     --     सुभाषचंद्र बोस
  • "दिल्ली चलो "     --     सुभाषचंद्र बोस
  • "तुम मुझे खून दो मै तुम्हें आजादी दूँगा"     --     सुभाषचंद्र बॉस 
  • "इन्कलाब जिन्दाबाद "     --     भगत सिंह 
  •  "करो या मारो "     --     महात्मा गाँधी 
  • "हिंदी, हिन्दू, हिन्दोस्तान"     --     भारतेन्दु हरिश्चंद्र
  •  "पूर्ण स्वराज्य "     --     जवाहरलाल नेहरू 
  •  "आराम हराम है"     --     जवाहरलाल नेहरू 
  • "भारत छोडो"     --     महात्मा गाँधी 
  • "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा"     --     श्यामलाल गुप्ता "पार्षद"
  • "वन्दे मातरम"     --     बंकिमचंद्र चटर्जी 
  • "स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है"     --     बाल गंगाधर तिलक 
  • "सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है"     --     राम प्रसाद बिस्मिल 
  • "सारे जहाँ से  अच्छा हिन्दोस्तॉं हमारा"     --     इकबाल 
  • "साईमन कमीशन वापस जाओ"     --     लाला लाजपत रॉय 

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Kabir ke Dohe | कबीर के दोहे

अपना तो कोई नहीं, देखी ठोकी बजाय। अपना अपना क्या करि मोह भरम लपटायी। । कबीरदास कहते है कि बहुत कोशिश करने पर, बहुत ठोक बजाकर देखने पर भी  संसार में अपना कोई नहीं मिला। इस संसार के लोग माया मोह में पढ़कर संबंधो को अपना पराया बोलते हैं। परन्तु यह सभी सम्बन्ध क्षणिक और भ्रम मात्र है।  [113]

Sanskrit Shlokas | संस्कृत श्लोक

न पश्यति च जन्मान्धः कामानधो नैव पश्यति । न पश्यति  मदोन्मतो हार्थि दोषात् न पश्यति । । अर्थात:-  जन्म से अंधा व्यक्ति देख नहीं सकता है, कामुकता में अंधा, धन में अंधा और अहम् में अंधे व्यक्ति को भी कभी अपने अवगुण नहीं दिखाई देते हैं   । [45]

Rahim ke Dohe | रहीम के दोहे

अधम वचन काको फल्यो, बैठी ताड़ की छांह। 'रहिमन' काम न आय हैं, ये नीरस जग मांह। । रहीम दास जी कहते है कि संसार में रहकर दूसरों के काम आने वाले मनुष्य का जीवन ही सार्थक होता है। जैसे ताड़ के वृक्ष की छाया में बैठकर कोई फल नहीं मिलता है उसी प्रकार कटु या निंदनीय वचन का कोई फल नहीं मिलता है। मनुष्य का जीवन ताड़ के वृक्ष के समान नहीं होना चाहिये जिस पर किसी प्रकार का कोई फल नहीं आता है अर्थात दूसरों के काम नहीं आता है। इसी प्रकार जो मनुष्य दूसरों के काम नहीं आता है उसका जीवन नीरस और निरर्थक होता है। [13]