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भारतीय संविधान की प्रस्तावना अथवा उद्देशिका


हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :
सामाजिक, आर्थिक और राजनितिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए ढृढ़ संकल्प हो कर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर 1949 ई0 मिति मार्ग शीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत दो हज़ार छह विक्रमी ) को एतद संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।

प्रस्तावना से संबन्धित  कुछ मुख्य बातें:-

  • जवाहरलाल  नेहरू द्वारा उद्देश्य संकल्प में जो आदर्श प्रस्तुत किया गया था, उसे ही  भारतीय संविधान की प्रस्तावना अथवा उद्देशिका में शामिल किया गया। इसे जवाहरलाल नेहरू द्वारा संविधान सभा में 13 दिसम्बर 1946 को संविधान की उद्देशिका के रूप में पेश किया गया था। 
  • प्रस्तावना भारतीय संविधान का परिचय करवाती है। 
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में 42  वें  संविधान संशोधन  1976 द्वारा  'समाजवाद', 'पंथनिरपेक्ष', और 'राष्ट्र की अखंडता' शब्द जोड़े गए। प्रस्तावना में अभी तक केवल एक बार संशोधन किया गया है। 
  • बेरुबाड़ी सर्वोच्च यूनियन वाद [1960 ] में सर्वोच्च न्यायलय ने यह निर्णय दिया कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा नहीं हैं इसलिए विधायका इसमें संशोधन नहीं कर सकती है। परन्तु यह स्वीकार किया कि जहां संविधान की भाषा अस्पष्ट हो या एक से अधिक अर्थ निकलते हो वहाँ प्रस्तावना को मार्गदर्शक के रूप में उपयोग में लिया जा सकता है। 
  • परन्तु केशवानंद भारती मामले [1973 ] में सर्वोच्च न्यायलय ने अपने निर्णय को पलट दिया और अपने निर्णय में कहा कि प्रस्तावना संविधान का हिस्सा है तथा इसमें संविधान के अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन किया जा सकता है। 
  • भारतीय संविधान में प्रस्तावना का विचार अमेरिका के संविधान से लिया गया है। 
  • प्रस्तावना की भाषा ऑस्ट्रेलिया के संविधान से ली गई है। 

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