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मई, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

Sanskrit Shlokas | संस्कृत श्लोक

न पश्यति च जन्मान्धः कामानधो नैव पश्यति । न पश्यति  मदोन्मतो हार्थि दोषात् न पश्यति । । अर्थात:-  जन्म से अंधा व्यक्ति देख नहीं सकता है, कामुकता में अंधा, धन में अंधा और अहम् में अंधे व्यक्ति को भी कभी अपने अवगुण नहीं दिखाई देते हैं   । [45]

Slogans | प्रमुख नारे

  स्वतंत्रता आंदोलन के कुछ प्रमुख नारे  "जय हिन्द "     --     सुभाषचंद्र बोस "दिल्ली चलो "     --     सुभाषचंद्र बोस "तुम मुझे खून दो मै तुम्हें आजादी दूँगा"     --     सुभाषचंद्र बॉस  "इन्कलाब जिन्दाबाद "     --     भगत सिंह   "करो या मारो "     --     महात्मा गाँधी  "हिंदी, हिन्दू, हिन्दोस्तान"     --     भारतेन्दु हरिश्चंद्र  "पूर्ण स्वराज्य "     --     जवाहरलाल नेहरू   "आराम हराम है"     --     जवाहरलाल नेहरू  "भारत छोडो"     --     महात्मा गाँधी  "विजयी विश्व तिरंगा प्यारा"     --     श्यामलाल गुप्ता "पार्षद" "वन्दे मातरम"     --     बंकिमचंद्र चटर्जी  "स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है"  ...

Inspirational Quotes | प्रेरणादायक वाक्य

कल्पना की कोई सीमा नहीं है; क्या संभव है, यह तय करने से पहले, यह तय करें की क्या सही है और क्या वांछित है।   Imagine no limitations; decide what's right and desirable before you decide what's possible. ब्रायन ट्रेसी   [Brian Tracy]   [119]

Story | सिंहासन बत्तीसी-3

चन्द्रकला सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ ( तीसरी पुतली )      एक बार पुरुषार्थ और भाग्य में इस बात पर ठन गई कि कौन बड़ा है। पुरुषार्थ कहता कि बगैर मेहनत के कुछ भी सम्भव नहीं है जबकि भाग्य का मानना था कि जिसको जो भी मिलता है भाग्य से मिलता है परिश्रम की कोई भूमिका नहीं होती है। उनके विवाद ने ऐसा उग्र रुप ग्रहण कर लिया कि दोनों को देवराज इन्द्र के पास जाना पड़ा। झगड़ा बहुत ही पेचीदा था इसलिए इन्द्र भी चकरा गए। पुरुषार्थ को वे नहीं मानते जिन्हें भाग्य से ही सब कुछ प्राप्त हो चुका था। दूसरी तरफ अगर भाग्य को बड़ा बताते तो पुरुषार्थ उनका उदाहरण प्रस्तुत करता जिन्होंने मेहनत से सब कुछ अर्जित किया था। असमंजस में पड़ गए और किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुँचे। काफी सोचने के बाद उन्हें विक्रमादित्य की याद आई। उन्हें लगा सारे विश्व में इस झगड़े का समाधान सिर्फ वही कर सकते है।        उनकी समझ में नहीं आया क्या किया जाए। द्वीप पर घूमने-फिरने चल पड़े। नगर के द्वार पर एक पट्टिका टंगी थी जिस पर लिखा था कि वहाँ की राजकुमारी का विवाह विक्रमादित्य से होगा। वे चलते-चलते महल तक पहुँचे।...

Story | सिंहासन बत्तीसी-2

  चित्रलेखा  सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ ( दूसरी पुतली )      एक दिन राजा विक्रमादित्य शिकार खेलते - खेलते एक ऊँचे पहाड़ पर आए। वहाँ उन्होंने देखा एक साधु तपस्या कर रहा है। साधु की तपस्या में विघ्न नहीं पड़े यह सोचकर वे उसे श्रद्धापूर्वक प्रणाम करके लौटने लगे। उनके मुड़ते ही साधु ने आवाज़ दी और उन्हें रुकने को कहा। विक्रमादित्य रुक गए और साधु ने उनसे प्रसन्न होकर उन्हें एक फल दिया। उसने कहा - " जो भी इस फल को खाएगा तेजस्वी और यशस्वी पुत्र प्राप्त करेगा। " फल प्राप्त कर जब वे लौट रहे थे , तो उनकी नज़र एक तेज़ी से दौड़ती महिला पर पड़ी। दौड़ते - दौड़ते एक कुँए के पास आई और छलांग लगाने को उद्यत हुई। विक्रम ने उसे थाम लिया और इस प्रकार आत्महत्या करने का कारण जानना चाहा। महिला ने बताया कि उसकी कई लड़कियाँ हैं पर पुत्र एक भी नहीं। चूँकि हर बार लड़की ही जनती है , इसलिए उसका पति उससे नाराज है और गाली - गलौज तथा मार - पीट करता है। वह इस...

Story | अकबर बीरबल

बादशाह का मूल्य      एक दिन राजदरबार लगा हुआ था और बादशाह अपने राज कार्य को जल्दी से निपटाने में लगा था। इसी बीच एक दरबारी बीरबल को नीचा दिखाने की मंशा से बोला - ’’शहंशाह  ! क्षमा हो तो गुलाम कुछ अर्ज करें । ’’ बादशाह ने उसे बोलने की अनुमति दी। वह बोला- ’’शहंशाह  आज मैंने रास्ते में एक अमीर आदमी को अपने नौकर से यह कहते सुना कि तू मुझे किसी काम का नहीं जान पड़ता , क्योंकि तू बड़ा मूर्ख है। ’’ यह सुनकर उस नौकर ने अपने मालिक से कहा कि- ’’ मालिक यद्यपि मैं आपका सेवक हूँ परन्तु फिर भी आपको आदमी की कीमत लगाना नहीं आता है। यदि आप कुछ विचार करते तो यह स्वयं सिद्ध हो जाता कि मैं आपके लिये कितना मूल्यवान हूँ । ’’ यह बाते सुनकर  मैं  चक्कर में पड़ गया कि मनुष्य की क्या कीमत होती है ? पृथ्वीनाथ  ! आपसे निवेदन है कि इसका निपटारा करके आप मेरे सन्देह को दूर कीजिये।   उसके ऐसे प्रश्न सुनकर बादशाह विचार करने लगा ’’ आज सेठ का नौकर कह रहा है , कल मेरा कोई दरबारी कह बैठे कि बादशाह क्या चीज है ? वह तो हमी लोगों  के बैठाने से गद्दी पर बैठा है। तो फिर मैं ...

Story | सिंहासन बत्तीसी-1

रत्नमंजरी सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ ( पहली पुतली )      पहली पुतली रत्नमंजरी राजा विक्रम के जन्म तथा इस सिंहासन प्राप्ति की कथा बताती है। आर्याव में एक राज्य था जिसका नाम था अम्बावती। वहाँ के राजा गंधर्वसेन ने चारों   वर्णो  की   स्त्रियो    से चार विवाह किये थे। ब्राह्मणी के पुत्र का नाम ब्रह्मवीत था। क्षत्राणी के तीन पुत्र हुए - शंख , विक्रम तथा भर्तृहरि। वैश्य पत्नी ने चन्द्र नामक पुत्र को जन्म दिया तथा शूद्र पत्नी ने धन्वन्तरि नामक पुत्र को। ब्रह्मणीत को गंधर्वसेन ने अपना दीवान बनाया , पर वह अपनी जिम्मेवारी अच्छी तरह नहीं निभा सका और राज्य से पलायन कर गया। कुछ समय भटकने के बाद धारानगरी में ऊँचा ओहदा प्राप्त किया तथा एक दिन राजा का वध करके ख़ुद राजा बन गया। काफी दिनों के बाद उसने उज्जैन लौटने का विचार किया , लेकिन उज्जैन आते ही उसकी मृत्यु हो गई।     क्षत्राणी के बड़े पुत्र शंख को शंका हुई कि उस...