बादशाह का मूल्य
एक दिन राजदरबार लगा हुआ था और बादशाह अपने राज कार्य को जल्दी से निपटाने में लगा था। इसी बीच एक दरबारी बीरबल को नीचा दिखाने की मंशा से बोला -’’शहंशाह ! क्षमा हो तो गुलाम कुछ अर्ज करें ।’’ बादशाह ने उसे बोलने की अनुमति दी। वह बोला-’’शहंशाह आज मैंने रास्ते में एक अमीर आदमी को अपने नौकर से यह कहते सुना कि तू मुझे किसी काम का नहीं जान पड़ता , क्योंकि तू बड़ा मूर्ख है।’’ यह सुनकर उस नौकर ने अपने मालिक से कहा कि-’’मालिक यद्यपि मैं आपका सेवक हूँ परन्तु फिर भी आपको आदमी की कीमत लगाना नहीं आता है। यदि आप कुछ विचार करते तो यह स्वयं सिद्ध हो जाता कि मैं आपके लिये कितना मूल्यवान हूँ ।’’ यह बाते सुनकर मैं चक्कर में पड़ गया कि मनुष्य की क्या कीमत होती है? पृथ्वीनाथ ! आपसे निवेदन है कि इसका निपटारा करके आप मेरे सन्देह को दूर कीजिये।
उसके ऐसे प्रश्न सुनकर बादशाह विचार करने लगा ’’आज सेठ का नौकर कह रहा है, कल मेरा कोई दरबारी कह बैठे कि बादशाह
क्या चीज है? वह तो हमी लोगों के
बैठाने से गद्दी पर बैठा है। तो फिर मैं उनको क्या जवाब दूँगा। अतः मुझे इसी क्षण
अपने मूल्य का निपटारा करा लेना चाहिये।’’
बादशाह ने उस दरबारी के प्रश्न को अपनी सभा में दुहराकर सभी
दरबारियो से अपना मूल्य पूछा। सभी लोग यह प्रश्न सुनकर चक्कर मे पड गये। इसी बीच
एक वृद्ध पुरूष जो बीरबल से ईर्ष्या करता था बोला -’’बादशाह!
इस उपस्थित जनता के बीच बीरबल ही सबसे अधिक बुद्धिमान है। अतः इस समस्या का
निपटारा उसी के द्वारा होना चाहिये।’’ वृद्ध का यह सुझाव
अकबर को पसन्द आया और उसने बीरबल से पूछा-’’बीरबल! क्या तुम बता
सकते हो कि मेरा मूल्य और वजन क्या है?’’
बादशाह का प्रश्न सुनकर बीरबल विचारपूर्वक बोला-’’पृथ्वीनाथ ! यह काम जौहरियो का है, क्योंकि मूल्य लगाना वे ही जानते है। यदि
हुक्म हो तो शहर के तमाम जौहरी, सर्राफ और साहूकारों
को बुलवा लूॅ। वृद्ध की मंशा बीरबल को फॅसाने की थी, परन्तु
बीरबल ने अपनी बुद्धिबल से उसी को फँसा दिया क्योंकि वह भी जौहरी ही था। बादशाह के
हुक्म से नगर के सभी जौहरी, सर्राफ और साहूकार
बुलाये गये। बीरबल बोलो - नगर जौहरियो, सर्राफ और साहूकारो!
आप लोगो को इसलिये बुलाया गया है कि आप लोग मिलकर बादशाह का वजन और मूल्य निश्चित
करें।
यह सुनकर सभी जौहरी, सर्राफ और साहूकार
अवाक हो गये, किसी के भी समझ मे
नही आया कि बादशाह का मूल्य और वजन कैसे निश्चित किया जावे। अन्त में जौहरियों का
मुखिया बोला -’’गरीब परवर! इस समय हम
लोग सरकार सूचना पाकर तुरन्त भागे चले आ रहे है। हमको कुछ देर की मुहलत मिले तो एक
जगह अलग बैठकर आपस में विचार कर उत्तर दे। बादशाह ने उसकी बात स्वीकार कर उनकी मदद के
लिये बीरबल को भी उनके साथ कर दिया।
सभी जौहरियो, सर्राफ, साहूकारो और बीरबल ने अकबर से पन्द्रह
दिन का समय मांगा। पन्द्रहवे दिन प्रातःकाल सभी जौहरी बीरबल के मकान पर उपस्थित
हुए और अशर्फी का तोडा लिये हुये बीरबल भी उनके साथ हो लिया। उधर बादशाह भी
पन्द्रहवें दिन का इन्तजार कर रहा था। उसने शहर के बाहर बाग में एक बड़ा तम्बू खड़ा
करवाया। तम्बू के मध्य मे बादशाह का सिंहासन था और उस तम्बू मे सभी प्रकार के लोगो
के बैठने की अलग अलग व्यवस्था थी। बीरबल जौहरियों के दल से पहले पहुॅचा। थोडी देर
बाद जौहरियों का दल भी जा पहुॅचा। सभी लोग कतार से खाली स्थान पर बैठाये गये और
उनके मध्य अशर्फियो का तोडा रख दिया गया। फिर उनमे से प्रत्येक जौहरी ने एक-एक
अशर्फी को तराजू पर रखकर पत्थर के बाट से तौलना शुरू किया। कुछ समय बाद एक जौहरी
बोला -’’मिल गयी! मिल गयी!!
मिल गयी!!! जिस बात की तलाश थी वह मिल गयी।’’
इतने
में उनका मुखिया उठा और उस अशर्फी को लेकर बादशाह के कदमों पर जा रखा। बादशाह बोला
-’’क्या मेरी कीमत यही एक अशर्फी है?’’ बूढे़ जौहरी ने गम्भीरतापूर्वक उत्तर
दिया -’’जी हॉ, यही अशर्फी आपका मूल्य है और यही आपका
वजन है। यह अन्य अशर्फियो से एक रत्ती बड़ी है,
इस
कारण इसके समान दूसरी अशर्फी नहीं है। पृथ्वीनाथ! हम प्रजागण साधारण अशर्फी है और
आप इस बड़ी अशर्फी के समान है।
बादशाह ने पूछा -’’तो क्या मुझमे और
अन्य दूसरे मनुष्यों में केवल एक रत्ती का ही अन्तर है?’’ सर्राफो का मुखिया बोला -’’ जी हॉ बादशाह! आप में और आपकी प्रजा में
केवल इतना ही अन्तर है कि प्रजा आपके अधीन रहने के लिये बनाई गयी है और आप प्रजा
को अपने अधीन रखने के लिये है। आप प्रजा मे जिस प्रकार बड़े समझे जाते है उसी
प्रकार यह अशर्फी भी अन्य अशर्फियों मे श्रेष्ठ साबित हुई है।
जौहरी की उपरोक्त युक्तिभरी वार्ता सुनकर बादशाह गद-गद हो गया
और उसको उसके साथियो सहित पुरूस्कार देने की आज्ञा दी।